पाँचवा पुरस्कार प्राप्त लघुकथा
राधा मौसी की बेटी की शादी में पूरा परिवार एकत्र था। हंसी, ठिठोली, गाना-बजाना जोरों पर था, पर मौसी बेचैन थी। अमरो बुआ दादी अब तक नहीं आई थी। इस उम्र में भी अमरो बुआ रिश्तेदारों के सभी के दुःख सुख में जरूर पहुँचती थी। उनके जैसी मजबूत गाँठ की रिश्तेदारी निभाना अब किसे आता है। अब तो परिवारों में भी सिकुड़नें आने लगी हैं। वहीं अमरो बुआ कमजोर पैर एवं नजरों को हिम्मत की लाठी से ठेलकर पहुँच जाती है परिवार के उत्सवों में।
उनके आते ही भरा पूरा परिवार होने की महक स्वयं फैल जाती है। राधा मौसी बेचैन थी, उदास थी। इतने में ही शोभा ने चहकते हुए कहा- लो आ गई आपकी रौनक। मोटा चश्मा गोरी रंगत, ढीली चमड़ी। लटकती बाहें, पर चेहरे पर अनुभव एवं प्यार की आब। बैठते ही शोभा से बोली, बिटिया, मेरे इस पर्स में मोबाइल निकालकर घर पर बहू को खबर कर दे कि ठीक-ठाक पहुँच गई हूँ। कमबख्त अक्षर ठीक से दिखते नहीं है।
शोभा ने अपने टच स्क्रीन मोबाइल को दिखाते हुए कहा- ऐसा वाला फोन लेना था। काँच पर तस्वीर आती है और छूने का एहसास भी होता है।
सब हँस पड़े। राधा दादी ने भी हँसते हुए पोपले मुँह से कहा कि आप सब लोग हमें सह रहे है। वही बहुत है छूकर महसूस करने की ताब तुम लोगो में कहाँ। मुझे तो यह मोबाइल भी इसीलिए दिया है कि पता चलता रहे कि बुढ़िया की घंटी कहीं बजना बंद तो नहीं हो गई। फिर बिटिया स्पर्श तो काँच छूकर नहीं, दिलों से हाथों तक पहुँचता है। शोभा ने भी हार नहीं मानी, बोली दादी टच स्क्रीन पर हाथ घुमाने का एहसास एकदम मस्त रापचिक है, लगता है दोस्त पास में ही है।
अमरो दादी ने तुनककर कहा कि बिटिया, स्क्रीन टच करके एहसास जगाने वाली पीढ़ी हो बाकी तो परिवार के टच से तो ऐसे बिदकते हो जैसे कि किसी अनचाही वस्तु को छू लिया है। राधा मौसी अपनी अमरो की आंतरिक अनुभूति एवं चोट को समझ रही थी , वहीं शोभा उसी टच स्क्रीन मोबाइल पर अपने मित्र के विभिन्न अंगों को छूने में अलमस्त थी।
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