‘‘ओ रिक्शा….बड़े बाज़ार चलेगा?’’
‘‘चलूँगा दीवान जी….और सरकार, कैसे हैं? पहले से कुछ कमज़ोर दिखाई दे रहे हैं। कुछ बीमार–ऊमार रहे क्या?’’
‘‘अबे तू तो ऐसे बात कर रहा है, जैसे पुरानी जान पहचान हो।’’
‘‘अरे आप भूल गए सरकार…पिछले साल राम बारात वाले दिन आपने मेरे ऐसा बेंत जमाया….ऐसा बेंत जमाया था कि अब तक निशान पड़ा हुआ है…ये देखिए….’’
‘‘मारा होगा….सरकारी बेंत है, ये तो ससुरा चलता ही रहता है।’’
‘‘लेकिन सरकार, मुझे मारने में आपकी कलाई में मोच आ गई थी।’’
‘‘अरे…तो तू किसना है क्या?’’
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अप्रैल-2018
संचयनपहचान Posted: May 1, 2015
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